प्रत्येक चंद्र मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात्री को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। फाल्गुन मास को इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि पर आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह अति वेगवान हो जाता है, मानों प्रकृति मनुष्य को अध्यात्म की ऊंचाइयों पर ले चलने को उद्यत हो।
शिव को एक शब्द, एक वाक्य में अथवा एक लेख में समेटना असंभव है, क्योंकि उन्हें समझना ही असंभव है। जैसे पृथ्वी पर सभी महासागरों के समग्र जल पर एक साथ दृष्टिपात करना असंभव है, ठीक वैसे ही शिव को समग्र रूप में देखना मनुष्य के लिए असंभव है। शिव को समझने के लिए स्वयं शिव बनना होगा। अतः हम केवल शिव के विभिन्न गुणों का व उनके स्वरूपों का वर्णन ही कर सकते हैं।
दक्षिण भारत में चिदंबरम के प्रसिद्ध नटराज मन्दिर में प्रचलित चिदंबरेश्वर स्तोत्र में ऐसी ही चेष्टा पाई जाती है। इस स्तोत्र के प्रथम 2 श्लोक यहाँ उद्धत कर रहा हूँ:
कृपासमुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रं जटाधरं पार्वतीवामभागम्।
सदाशिवं रुद्रमनन्तरूपंचिदम्बरेशं हृदि भावयामि॥१॥
वाचामतीतं फणिभूषणाङ्गं गणेशतातं धनदस्य मित्रम्।
कन्दर्पनाशं कमलोत्पलाक्षं चिदम्बरेशं हृदि भावयामि॥२॥
भगवान शिव के आठ रूप व पाँच मुख हैं। उन्ही के माध्यम से हम शिव की विशिष्टताओं के समझने का प्रयास करें।
भगवान शिव के आठ रूप हैं: शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान व महादेव। शर्व के रूप में वे सर्वत्र विराजमान हैं, भव के रूप में वे अत्यंत दयावान हैं, रुद्र के रूप में वे मानव चेतना के ऊर्ध्वगमन की शक्ति हैं, उग्र के रूप में वे इस संसार की ऊर्जावान प्राणशक्ति हैं, भीम के रूप में वे समस्त बाधाओं व कठिनाइयों के संहारक हैं, पशुपति के रूप में वे उन समस्त निम्न स्तर की आत्माओं के स्वामी हैं जिनका कोई अन्य आश्रय नहीं है, ईशान के रूप में वे इस सृष्टि में सर्वाधिक दैदीप्यमान हैं, व महादेव के रूप में वे सबके आराध्य हैं।
भगवान शिव के पाँच मुखों में से प्रथम मुख का नाम है सद्योजात।
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः॥
इस मुख ने ब्रह्मा को सृष्टि की रचना का आशीर्वाद दिया था।
भगवान शिव के पाँच मुखों में से द्वितीय मुख का नाम है वामदेव।
वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः
कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथाय नमः
सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः॥
इस मुख ने ब्रह्मा को उनके द्वारा बनाई गई सृष्टि के पालन का आशीर्वाद दिया था।
भगवान शिव के पाँच मुखों में से तृतीय मुख का नाम है अघोर।
अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः।
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः॥
यह मुख ज्ञान का प्रतीक है, अतएव शिव की संहारात्मक व सृजनात्मक ऊर्जा को दर्शाता है।
भगवान शिव के पाँच मुखों में से चतुर्थ मुख का नाम है तत्पुरुष।
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
तत्पुरुष अर्थात ‘यह पुरुष’। यह मुख जीवात्मा के आनंद का द्योतक है।
भगवान शिव के पाँच मुखों में से पंचम मुख का नाम है ईशान।
ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां।
ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मेऽअस्तु सदाशिवोम्॥
यह ईश्वर की चित्शक्ति का द्योतक है। यह वह आकाश है जो जगत का उद्गमस्थल है।
शिव प्राणिमात्र को मृत्यु के भय से मुक्ति देते हैं। वे महाकाल हैं जो काल के भी संहारक हैं।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
भौतिक धरातल पर शिव लौकिक मृत्यु के भय से उद्धार करते हैं, व आध्यात्मिक धरातल पर शिव अज्ञान रूपी मृत्यु से उद्धार करते हैं।
शिवरात्रि पर क्या करें-

• सर्वप्रथम गंभीर व शांत रहें।
• स्वयं के अस्तित्व के प्रति सजग रहें।
• मादक पदार्थों से दूर रहें।
• उपवास रखें।
• दिवस में रुद्राभिषेक करें।
• रात्रि 8 बजे से प्रातः 4 बजे तक जागरण करें। यथाशक्ति ध्यान करें व ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। शिव स्तुति, शिवोपनिषद्, शिवमहिम्न, रुद्राष्टक आदि स्तोत्र का पाठ करें।
• महाभारत के अनुशासन पर्व में दिए गए शिव सहस्त्रनाम से बिल्वपत्र द्वारा भगवान शिव की अर्चना करें।
• शिवरात्रि पर आध्यामिक ऊर्जा में प्रचंड वेग रहता है, अतः मंत्र सिद्धि के लिए यह अत्युत्तम रात्रि है। रीढ़ को दंडवत सीधा रख अपने इष्टमंत्र का यथाशक्ति जप करें।
- अरुण व्यास
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